Sunday, October 30, 2011

अतिथि की योग्यता नहीं देखनी चाहिए

                            किसी शहर में एक सेठ रहता था| सेठ बहुत दयालु और इश्वर भक्त था| उसका नियम था की  वह किसी अतिथि को भोजन कराए बिना खुद भोजन नहीं करता था| एक दिन उसके यहाँ कोई भी अतिथि नहीं आया|  इस लिए वह खुद किसी निर्धन मनुष्य को ढूढ़ने निकल पड़ा| मार्ग में उसे एक बहुत बृद्ध तथा दुर्बल मनुष्य  मिला| उसे भोजन का निमंत्रण दे कर बड़े आदर पूर्वक वह उसे घर ले आया| हाथ पैर धुलवा कर भोजन कराने के लिए बैठाया|
                           अतिथि ने भोजन सम्मुख आते ही खाने के लिए ग्रास उठाया| उसने न तो भोजन मिलने के लिए इश्वर को धन्यवाद किया, और नहीं इश्वर की बंदगी की| सेठ को यह देख कर हैरानी हुई| उसने अतिथि से इसका कारण पूछा| अतिथि ने कहा-मैं तुम्हारे धर्म को मानने वाला नहीं हूँ, मैं अग्निपूजक हूँ| अग्नि को मैंने अभिवादन कर लिया है|
                           सेठ को यह  सुनकर बहुत गुस्सा आया और अतिथि को कहा "काफ़िर कहीं का!चल निकल मेरे यहाँ से"| सेठ ने बृद्ध को उसी समय धक्के दे कर घर से बहार निकल दिया|
                          उस समय आकाशबाणी होई कि "सेठ! जिसे इतनी उम्रतक मैं प्रति दिन खुराक देता रहा हूँ, उसे तुम एक समय भी नहीं खिला सके! उल्टा तुमने निमंत्रण दे कर, घर बुलाकर उसका तिरस्कार किया! इस आकाशबाणी को सुन कर सेठ को अपने गर्व तथा ब्यवहार पर अत्यंत दुःख हुआ|

Wednesday, October 19, 2011

खरगोश और मेढक

                    बहुत समय पहले की बात है| किसी जंगल में बहुत सारे खरगोश रहा करते थे| खरगोश बहुत दुर्बल और डरपोक थे| ताकतवर जानवर उन्हें देखते ही मारकर खा जाते थे| इस कारण उन्हें हमेशा अपने प्राणों के लिए शंकित रहना पड़ता था| एक दिन सभी खरगोशों ने मिलकर एक सभा बुलाई| इस सभा में उन्हों ने निश्चय किया कि सदा भयभीत रहने की अपेक्षा प्राण त्याग कर देना ही अच्छा है| इस लिए जैसे भी हो, हम लोग आज ही प्राण त्याग कर देंगे|
                     

                   ऐसी प्रतिज्ञा करने के बाद निकट के तालाब में कूद कर प्राण देने की इच्छा से सभी खरगोश वहां जा पहुंचे| उस तालाब के किनारे कुछ मेढक भी बैठे  हुए थे| खरगोशों के नजदीक पहुंचते ही मेढक भय से व्याकुल हो कर पानी में कूद पड़े| इसे देख कर खरगोशों का नेता अपने साथियों से बोला- मित्रो! हमारा  इतना भय भीत होना और खुद को इतना कमजोर समझना अच्छा नहीं है| आप ने यहाँ आकर देखा कि कुछ प्राणी ऐसे भी हैं जो हम से भी अधिक दुर्बल और डरपोक हैं| हमें इस से सबक सीखना चाहिए, हमें जान देने की बजाय हालातों से लड़ना चाहिए| सभी जंगल में वापस आ गए| 
                   

                    इस लिए मनुष्य को अपनी दुरवस्था के समय निराश नहीं होना चाहिए| हम चाहे कितनी भी कठिनाई में क्यों न हों, हमें ऐसे कई लोग मिल जाएँगे जिनकी अवस्था हम से भी खराब होगी|
 

Tuesday, October 11, 2011

साधु पुत्री

                            बहुत समय पहले की बात है, एक महात्मा अपनी पत्नी के साथ जंगल में नदी के किनारे कुटिया बनाकर रहते थे| उनकी कोई औलाद नहीं थी | एक दिन महात्माजी नदी में नहाने के बाद हाथ से पानी का अर्घ दे रहे थे, तो उनके हाथों में ऊपर उड़ रहे एक चिल के मुंह से एक चुहिया गिर गयी| चुहिया को देख कर महात्माजी बहुत प्रशन्न हुए| महात्माजी ने अपने तपोबल से चुहिया को लडकी में बदल दिया| अब वो  उस लड़की को लेकर अपनी पत्नी के पास गए| महात्मा पत्नी लड़की को पा कर बहुत खुश हुई और उसे अपनी लड़की की तरह पालने का निश्चय किया| धीरे धीरे लड़की बड़ी होती गयी| कुछ सालों में लड़की शादी के योग्य हो गई| महात्मा जी चाहते थे कि उनकी लड़की की शादी किसी ताकतवर के साथ हो| उन्हों ने सब से पहले सूर्य भगवान का आवाहन किया| सूर्य भगवान प्रकट हो गए| सूर्य को देखते ही लड़की ने कहा इस में तो गर्मी ही बहुत है मैं इस से शादी नहीं करुँगी| सूर्य ने कहा मुझसे जादा ताकतवर बादल है वह मेरी रोशनी को भी रोक लेता है आप उसी से इसका विवाह कर दें| महात्मा जी ने बादल का आवाहन किया| बादल को देखते ही लड़की ने कहा यह तो बहुत काला है इसके साथ मैं शादी नहीं करुँगी| बादल ने कहा मुझसे ज्यादा  ताकतवर हवा है जो मुझे उड़ा कर कहीं भी लेजा सकती है| महात्माजी ने हवा का आवाहन किया| बड़े जोरसे हवा आई तो लड़की ने कहा नहीं नहीं मैं इस से शादी नहीं कर सकती यह तो मुझा उड़ा कर ले जाएगा| हवा ने कहा मुझ से ताकतवर पहाड़ है जो मेरी गति को भी रोक लेता है आप इसकी शादी पहाड़ से  कर दो| महात्माजी ने आवाहन कर के पहाड़ को बुलाया| पहाड़ को देखते ही लड़की ने कहा नहीं नहीं इस से मैं शादी नहीं कर सकती| पहाड़ ने कहा  मुझसे ताकतवर तो चूहा है जो मेरे में छेद करके मुझे गिरा सकता है| चूहे का नाम सुनते ही लड़की खुश हो गई और शादी को राजी हो गई| महात्माजी ने लड़की को चुहिया में बदल दिया और दोनों की शादी कर दी| दोनों ख़ुशी से अपनी जिन्दगी बिताने लगे| इसी लिए कहते हैं कि कोई किसी का भाग्य नहीं बदल सकता है|

Tuesday, October 4, 2011

माँ की नसीहत

                         किसी गांव मे एक सेठ रहता था| सेठ के परिवार मे पत्नी और दो बच्चे थे| बेटा बड़ा था और उसका नाम गोमू था| बेटी छोटी थी उस का नाम गोबिंदी था| गोबिंदी घर मे सब से छोटी थी इस लिए सब की  लाडली थी| हर कोई उसकी फरमाइश  पूरी करता था| धीरे धीरे बच्चे बड़े हो गए| बेटा शादी लायक हो गया| सेठ ने एक सुन्दर सी लड़की देख कर बेटे की शादी कर दी| घर मे नईं बहु आ गयी| बहु के आने पर घर वालों का बहु के प्रति आकर्षण बढ गया| गोबिंदी की तरफ कुछ कम हो गया | गोबिंदी इस बात को बर्दाश्त नहीं कर सकी| वह अपनी भाभी से इर्ष्या करने लगी| जब गोबिंदी की माँ को इस बात का पता चला तो उसने गोबिंदी को बुलाकर अपने पास बैठाया और नसीहत देनी शुरु करदी| देखो बेटी  जिस तरह तुम इस घर की  बेटी हो वैसे ही वह भी किसी के घर की  बेटी है| नए घर मे आई है| उसे अपने घर के जैसा ही प्यार मिलना चाहिए| क्या तुम नहीं चाहती हो कि जैसा प्यार तुम्हे यहाँ मिल रहा है वैसा ही प्यार तुम्हारे ससुराल मे भी मिले? अगर तुम किसी से प्यार, इज्जत पाना चाहती हो तो पहले खुद उसकी पहल करो| दूसरों को प्यार दो, प्यार बाँटने से और बढता है| इस लिए तुम पहल  कर के अपनी भाभी से प्यार करो| वह इतनी बुरी नहीं है जितनी तुम इर्ष्या  करती हो| माँ की नसीहत को गोबिंदी ने पल्ले बांध लिया | अपनी भाभी को गले लगाकर प्यार दिया, और हंसी ख़ुशी साथ रहने लगे| जितना प्यार गोबिंदी ने अपनी भाभी को दिया उस से कहीं अधिक प्यार उसको भाभी से मिला| इस लिए कभी किसी से इर्ष्या  नहीं करनी चाहिए|